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आत्मन्

खुद में खुद को खोजने में
तेरी अपनी एक लगन थी
खयालों में उलझने पे
चेहरे पे अलग मुस्कान थी।

क्या दूर और क्या पास
न इसकी कोई समझ थी
अपने आप से करीब होने की
एक हल्की सी झलक थी।

आँखें अपनी बंद करके
रोशनी की ओर बढ़ने लगा
कर्म अपने हाथेली पे रख
कर्तव्य के सहारे चलने लगा।

हर पहेली सुलझाने का
सर पे एक जुनून सा था
बीती पहेलियों में बुझने का
प्यारा सा सुकून भी था।